रुबाई
By pareshkale on मन मोकळे from feedproxy.google.com
गझल लिखू, पर समा बया कर नही सकतातेरे बारेमे सोच सकु, पर तुझे पा नही सकताढूंढता हु नजदीक तेरे, न होने की वजह इजहार ऐ इश्क़ मगर, कर नही सकतामलमली अहसास ही काफी है, पास होनेकामजा नही बिन तेरे, बारिश में भीग नही सकताशुक्रगुजार हूं जिंदगी ने कभी तुझसे मिलायाएतराज़ है, मक़रूज़ हु, कर्ज चुका नही सकतातू मेरी रुबाई है, सिवा तेरे न-मुकम्मल जीनाचाहना चाहता हु, मगर तुझे खो नही सकता