मिलीभगत
By pareshkale on मन मोकळे from feedproxy.google.com
हर रोज सुबहमुझे बिना पुछेवो सुरज की किरनेतुम्हे कैसे लिपट जाती है?और गौरतलब हैतुम क्या खिल जाती हो।कुछ उसी तरहनहाने के बादवो पानी की बुंदेतुम्हे नही छोडतीखैर कोई बात नहीगिले बाल मेरी कमजोरी है।हवाओंको तो बसचाहीये होता है बहानातुम्हारे साथ रहेऔर करे मस्तीयाशायद वही तुम्हारीहसी खिलाई रहती है तुम्हे बिलकुल पता नहीरात की चादर ओढे जब सो जाती होउस मासुम चेहरेकेभाव निहारने के लियेमै रातभर जागता हू ।और पता नहीइस सृष्टीके कितनेअनजान अनगिनततत्व तुम्हे आजभीतराशे जा रहे हैशायद तुमसे अभी तकखुदाका मन भरा नही।