मरासिम
By pareshkale on मन मोकळे from pareshkale.blogspot.com
उन खुदसर यादोंको जाने क्यों मनाता हूंकुछ देर छुप जाए कही हररोज मनाता हूंकमीयों के बावजूद तुझे उतनाही चाहता हूंख़यालोमे तेरे होनेका जश्न हररोज मनाता हूंगुलपोशी में गुमी तेरी मसर्रत ढूंढता हुअज़ली रातकी सुबह हररोज मनाता हुपरेशान मरासिम को क्या नाम दु सोचता हूंगुजरे रिश्ते का अहसास हररोज मनाता हु