आरजू
By pareshkale on मन मोकळे from feedproxy.google.com
समंदर के रेतसे साहिल पे, घर बनाने की आरजू थीबहकी बहकी लहरोंसे, मुझे दिल्लगी की आरजू थी |बहता गया इस जिंदगी के साथ, या फिर बहाया गयातुझसे मुलाकात के बाद, मुझे किनारे की आरजू थी |बुझा न दे कही ये हवाएं, काँपती लौको मैंने छुपा दियाजला क्यों हाथ मेरा मुझे, कसूर जानने की आरजू थी |मीर का मुद्दा इंतकाम था, कहे तुमसा कोई तुम्हे मिले'अकाब' चाहे परवाह, मुझे उससे मिलने की आरजू थी |